ग़ज़ल
अगर है इश्क़ सच्चा तो मुहब्बत कर
अगर है इश्क़ सच्चा तो मुहब्बत कर
ज़माने भर से चाहे फिर बग़ावत कर
ख़ुदा सुनता पुजारी-मौलवी की बस
शराबी हूँ मुझे मत कह इबादत कर
मिरे दर से न लौटे कोई भी भूखा
मिरे मौला मिरे ऊपर इनायत कर
खिली है धूप नफ़रत की शहर भर में
गली के आशिक़ों की तू वक़ालत कर
बिना तेरे यहाँ वीरान है सबकुछ
नज़ारे लौट कर फिर खूबसूरत कर
भला नाराज़ रह मुझसे मिलेगा क्या
बड़ा दिलदार हूँ मुझसे शिकायत कर
सुनो “साहेब” कहती जो इशारों से
जरा फिर ज़ुल्फ़ से मेरी शरारत कर
-Shreyash Tripathi
@saheb_shrey