ग़ज़ल
इश्क़ लिखता दर्द लिखता मर्ज़ लिखता शाइरी में
लिखता हूँ अब ज़िन्दगी का कच्चा चिट्ठा शाइरी में
बिछड़ा हूँ तो क्या हुआ दीदार उनका रोज़ करता
ऊला में भी सानी में भी उनसे मिलता शाइरी में
सोच कितने कीमती थे पल जो तेरे साथ गुज़रे
कतरा-कतरा बिक गया पर अब है कर्ज़ा शाइरी में
वस्ल का तो किस्सा भी अब मोजिज़ा सा हो गया है
वस्ल को अब सोचकर ही हिज्र करता शाइरी में
चाँद भी शर्माता है औ रात भी बेचैन दिखती जब कभी मैं
ज़िक्र करता इक हँसी का शाइरी में
वो इबादत वो मुहब्बत वो ही नफरत रहती ‘आबिद’
ये भी कहता वो भी कहता काफ़ी मसला शाइरी में
-Ashutosh Pandey
@p.a.n.d.e.y_j.i